रश्मि विपिन अग्निहोत्री की कवितायेँ

कविता-1

कुछ इस कदर मर्यादा रखो ।
तहज़ीब औरों से ज्यादा रखो ।

ग़र जीतना है दिलों को तुम्हें ,
तमीज़ का ओढ़े लिबादा रखो ।

कुछ और कमा न सके तो क्या ,
अपनेपन का संग इफ़ादा रखो ।

हार कर मायूस न होना कभी ,
तुम जीत का बुलन्द इरादा रखो ।

उड़ो बेशक तुम आसमां में ,
ज़मीं पर लेकिन आदा रखो ।

बैर हो भी जाये मिटा लो बस ,
दिलों का दर तुम कुशादा रखो ।

करो इश्क़ हर कौम से बेखौफ़ ,
“रश्मि” यह कायम जादा रखो ।

लिबादा – वस्त्र
इफा़दा- लाभ
जादा – रिवाज़
आदा -पुनः वापसी
कुशादा- खुला हुआ

कविता-2

वह नारी ही है!

जिम्मेदारी की भट्टी में
ईंट सी पकती है नारी,
हर रूप में शीश धर
कर्त्तव्य की टोकरी,
पड़ती पौरुष पर भारी ।
हर रोज टूटती है
कच्ची ईंट सी
फिर जुड़ जाती है,
वह नारी ही है जो
नया अस्तित्व बनाती है ।
संघर्ष से तपती निखरती
पल -पल बिखरती ,
समेट लेती खुद को खुद ही,
हाँ, वह नारी ही है…..
चुनौती की गढ़री
सहर्ष धारण कर
कर्मपथ पर खड़ी
हो कोई कर्म क्षेत्र
तपव्रती सी अड़ी
वह नारी ही है…..
जिम्मेदारी की भट्टी में
ईंट सी पकती है नारी,
हर रूप में शीश धर
कर्त्तव्य की टोकरी ,
पड़ती पौरुष पर भारी
हाँ, वह नारी ही है।।

कविता-3

हर युवा विवेकानन्द हो जाये

गाओं सुरभित गान कोई
कोई नव छन्द हो जाये,
हे ! ईश्वर भारत का हर युवा
विवेकानन्द हो जाये ।

माँगू यही दुआ कि भारत में
फिर युगपरिवर्तक आये,
हो समय की धार कोई
हर युवा नरेन्दनाथ बन जाये।

तपस्या त्याग ब्रह्मचर्य से
पावन करे जो धरा,
कण -कण भारत का
सुरभित मकरन्द बन जाये।

सम्पूर्ण भारत में प्रेम योग
तप समर्पण भक्ति हो,
हो साहचर्य सन्तों का
सत्कर्म त्याग की शक्ति हो ।

नव भारतवर्ष निर्माण
नव जागरण हो देश में,
फिर कोई युगप्रवर्तक आये
विवेकानन्द के वेश में।

मिटे हिन्द से धर्मान्तरण
पश्चिम का लिबास उतरे,
काश धरा पर फिर जगाने
कोई अलख नरेन्दनाथ उतरे।

अधर्म के दूर अन्धियारे हो
हिन्द -युवा सन्त निराले हो,
धर्म के प्रकाश से चँहू रश्मि
स्थिर आनन्द हो जाये ।

गाओं सुरभित गान कोई
कोई नव छन्द हो जाये,
हे ! ईश्वर भारत का हर युवा
विवेकानन्द हो जाये।।

कविता-4

मैं नारी

मैं नारी हाड-मांस का पुतला नहीं,
जीते जागते विचारों की ज्वाला हूंँ।

शिवा का हलाहल हाला हूंँ मैं!
मैं ही प्रखर ज्वलंत सूर्य दैदीप्यमान हूंँ।

नखत नव विचार क्रांँति हूँ मैं!
मैं हीअदम्य महाराणा का भला हूंँ ।

लक्ष्मी की तेजस तलवार हूँ मैं!
मैं ही नानक -अमृतवाणी धार हूंँ।

गदा हूंँ महाबली भीम का मैं!
मैं ही कौन्तेय के गांडीव का वार हूंँ।

भीष्म की अटल प्रतिज्ञा हूंँ मैं!
मैं ही कालरात्रि की अखंड आरती हूंँ ।

नित्य निसर्ग प्राण अर्पण भारती मैं!
मैं ही मीत समरभूभि में धर्म सारथी ।

शाश्वत शशक्त प्रहार काल का मैं!
मैं ही हूँ दैवगति लोक ब्रह्माण्ड का।

अजान-अरदास की पाक वाणी मैं!
मैं ही गीता वेद बाइबिल कुरान हूँ।

मैं नारी हाड-मांस का पुतला नहीं,
जीते जागते विचारों की ज्वाला हूंँ।

रश्मि विपिन अग्निहोत्री

केशकाल

छत्तीसगढ़

मो.-74157 61335