बस्तर पाति अभिनंदन-2018
बस्तर क्षेत्र कमाल का क्षेत्र है। यहां विभिन्न प्रतिभायें मौजूद हैं और तो और उनकी सफलता की कहानी भी अद्भुत है। प्रदेश की सीमाओं को लांघ कर देश भर में खुद को स्थापित करने की होड़ लगी है। मैंने अपने पर्सनल अनुभवों से देखा की ये सभी सम्मानित जन अपनी धुन में रमे हुए हैं बगैर किसी प्रचार प्रसार के। आप सभी हमारे क्षेत्र के लिए एक प्रकाश स्तंभ हैं। अपने अपने क्षेत्र के अनमोल रत्न हैं। बस्तर पाति और साहित्य एवं कला समाज के माध्यम से आप का सम्मान मात्र इसलिए किया जा रहा है कि समाज आपकी प्रतिभा को पहचान कर अपने नये संदर्भ गढ़े, नये प्रतिमानों से देखना शुरू करे। हम शुरू करते हैं अप्रतिम सफलताओं की कहानियां!
पहले हम वर्ष 2017 के बस्तर पाति अभिनंदन के रत्नों को आपके समक्ष रखते हैं।
बस्तर पाति अभिनंदन-2018-डॉ जयमती कश्यप-गोंडी साहित्य
-जैसा कोण्डागांव के लोकजीवन के एनसाइक्लोपीडिया श्री हरीहर वैष्णव जी की फेसबुक वॉल से पता चला कि महिला-बाल विकास विभाग, कोंडागाँव पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत डॉ. जयमती कश्यप को उनके द्वारा किये गये शोध “बस्तर के परगनाओं की सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक व्यवस्था का एक ऐतिहासिक अध्ययन“ के लिये विगत दिनों पं. रविशंकर विश्वविद्यालय, द्वारा पीएच-डी की उपाधि से अलंकृत किया गया। 10 मार्च को उन्हें रायपुर के “रोटरी क्लब ऑफ रायपुर ग्रेटर“ और “क्रिएटिव आईज़ प्रमोशन्स“ द्वारा 2019 के “मणिकर्णिका“ सम्मान से भी विभूषित किया गया। डॉ. कश्यप द्वारा अब तक कई महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। साहित्यिक संस्था “साहित्य अकादेमी में भी शिरकत की हदेश के विभिन्न मंचों पर बस्तर का नाम रोशन करती आ रही हैं।
डॉ. जयमती कश्यप ने पाठशाला का मुँह तक नहीं देखा विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए और स्वाध्याय से ही अब तक कुल 6 विषयों (इतिहास, राजनीति विज्ञान, हिन्दी साहित्य, भूगोल, ग्रामीण विकास, समाज शास्त्र) में एम. ए. किया है। अभी वे सातवें विषय (प्राचीन इतिहास) पर एम. ए. की तैयारी कर रही हैं। गोंडी में लिखी उनकी पुस्तिका “नना मुया“ का प्रकाशन पिछले दिनों राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, नयी दिल्ली से हो चुका है और यह पुस्तिका जिले की सभी प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिये शासकीय तौर पर प्रदाय की गयी है। दन्तेवाड़ा के कारली गाँव में जन्मी डॉ. कश्यप मूलतः गोंड (मुरिया) जनजाति से आने वाली हैं। सम्पूर्ण बस्तर अंचल को उन पर गर्व है। इतनी ज्यादा उपलब्धियों पर उनका बस्तर पाति अभिनंदन तो उनका बनता ही है।