कृष्ण मोहन ‘अम्भोज’ की कवितायेँ

ग्रीनहंट के डंडे

यह नदी झरने
कब तक सहते
मौसम के हथकंडे
जंगलों की
पीठों पर पड़ रहे
ग्रीन हंट के डंडे।
जन्म ले रही है नई सभ्यता
आदिवासी कोखों से
सीखा है सबकुछ आज ने
ऐतिहासिक धोखों से
उखड़े है
लौहजनित आंधी में
अब हरियाली के झंडे।
जब क्यारियों की देह पर ही
आये दनदनाते बूट
चीखों में तब्दील चुप्पियां
रचती ताण्डव चौखूंट
काम नहीं आये
शांतिमंत्र भी
विफल हुऐ काजी पंडे।

बुनियादों में दरारें

शिखरों के
गड़ने से आई
बुनियादों में दरारें।
छाया लुभा रही निशदिन
हमें पराये सायबानों की
सुध-बुध भूल गये हैं अपने
इन दीमक लगे मकानों की
मददों के
अंधे चढ़ बैठे
तो अपने ही पंख उतारे।
शहर हो रहे गांव हमारे
अब मानव ढला मशीनों में
फसलों की एवज कलपुर्जे
उगने लगे हैं जमीनों में
सपने सारे
हांफ रहे हैं
मृगतृष्णा के मारे-मारे।


कृष्ण मोहन ‘अम्भोज’
नर्मदा निवास, न्यू कालोनी,
पचोर-465683 जिला-राजगढ़(म.प्र.)
मो.-07566695910