लाला जगदलपुरी-संस्मरण-शशांक शेण्डे

संस्मरण-शशांक शेण्डे

यह उन दिनों की बात है जब लाला जगदलपुरी जी आकाशवाणी से कुछ दूरी बनाए हुए थे। मैं लाला जी के घर गया पर वे वहां नहीं मिले। मैं उनके घर से वापिस आ रहा था तब वे चिर परिचित अंदाज़ में एक हाथ में छत्री पकड़े पैदल चलते हुए रास्ते में मिल गए। मैंने रूककर अभिवादन किया और बताया कि मैं आकाशवाणी जगदलपुर में काम करता हूं। आकाशवाणी जगदलपुर नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के तत्वावधान में एक कविता प्रतियोगिता करवा रहा है और आकाशवाणी को प्रसन्नता होगी यदि आप उस प्रतियोगिता में निर्णायक के रूप में उपस्थित रहें। लाला जी ने एक बार अपनी बड़ी बड़ी ऑखों से मुझे देखा और कहा कि आजकल मेरी तबियत ठीक नहीं रहती है और मैं कहीं जाता नहीं हूं। मैंने उन्हें बताया कि केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों, बैंकों, भारत सरकार के उपक्रमों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार और हिन्दी की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति प्रयासरत रहती है और इसी के मद्देनज़र यह प्रयास किया जा रहा है। मेरा उनसे कोई परिचय नहीं था परन्तु उन्होंने मेरी बात मान ली और निर्णायक के रूप में उन्होंने शिरकत की। मैंने लाला जी जैसा व्यक्तित्व बिरला ही पाया है। उनके अंदर न घमंड, न महत्वाकांक्षाएं न बड़ा साहित्यकार होने का दिखावा जैसा कि आजकल हमको देखने को मिलता है, कुछ भी न था। वे आए और उस कविता प्रतियोगिता में संयोगवश मेरी कविता ‘हिन्दी पूर्ण सक्षम है अंग्रेज़ी के पीछे क्यों दौड़े’ को प्रथम पुरस्कार मिला जो मेरे लिए गौरव की बात है क्योंकि उसके निर्णायक लाला जी थे। जगदलपुर का कोई भी साहित्यकार लाला जी से प्रेरणा अवश्य पाता है, मैंने भी प्रेरणा पाई है, उनको श्रद्धाजंली स्वरूप मेरी यह कविता लाला जी को समर्पित है।
लाला जगदलपुरी
लाला जी/ क्या तुम चले गये हो ?
मैं तो आज भी देखता हूं
तुम पूरे शहर में
छत्री लेकर पैदल
घुमते रहते हो
जानता हूं मैं
तुम्हारा वो पैदल चलना
नहीं था किसी पुरस्कार के लिए
नहीं था किसी सम्मान के लिए
था पथ पर आगे बढ़ना
आत्म सम्मान के साथ
स्वाभिमान लिए
सारा शहर दो ही नाम
रटा करता था
बस्तर का राजा
जगदलपुर का लाला
नहीं जानता मैं
कितने लोगों ने पढ़ा
तुम्हारा लिखा साहित्य

फिर कैसे घर-घर पहुॅंच गए
मैं जानता हूं तो बस इतना
तुम्हारे कण-कण में
बसता था बस्तर
कण-कण में बस्तर की सभ्यता और संस्कृति
साल वनों का द्वीप
यहां के आदिम और प्रकृत्ति
मैं जानता हूं
तुम समाए हो
यहां के प्रत्येक साहित्यकार में
बस्तर का साहित्य ही
आकार लेता है
तुम्हारे महाराजाओं जैसे बालों,
तीखे नक्श
गहराई लिए तपस्वी आंखों से
प्रखर सूर्य से तेज
ओजस्वी व्यक्तित्व से
और समाता है जाकर
तुम्हारे ह्दय की गहराईयों में

तुम बस्तर के लाला हो
या लाला का ये बस्तर है
पर्याय बन गए हो तुम
बस्तर की संस्कृति
सभ्यता और साहित्य का
सारा शहर अगर पृथ्वी
तो तुम लाला जी धुरी हो
जगन्नाथ के चरणों में
ज्यों जगन्नाथपुरी
वैसे ही हमारे
तुम लाला जगदलपुरी

शशांक शेंडे