संरक्षक व वंदना गीत के रचियता
सन् 1987 में पंजीकृत ‘‘बस्तर माटी’’ लोक सांस्कृतिक मंच, जगदलपुर के संरक्षक स्व. लाला जगदलपुरी द्वारा हल्बी में रचित वन्दना गीत……. ‘‘धन, धन बस्तर माय धरतनी,
तुचो मया चो छांय ऐ धनी।’’
आज भी याद है सांस्कृतिक संस्था के लिए लाला जगदलपुरी के संरक्षक बनने की बात………एवं उनके द्वारा रचित हल्बी वन्दना गीत की यादें………….। बस्तर माटी लोक सांस्कृतिक मंच जगदलपुर के कलाकार पदाधिकारी बस्तर के साहित्यकार, लेखक, कवि, गीतकार, लोक संस्कृति के जानकार, सरल हृदय के व्यक्ति को सांस्कृतिक संस्था के संरक्षक बनाने के लिए उनके घर कवि-निवास डोकरी घाट पहुंचे, तब लाला जी आराम कुर्सी में बैठे पुस्तक पढ़ने में लीन थे। हमने लाला जी का अभिवादन किया। उन्होंने स-स्नेह बैठने को कहा, वैसे कला, संस्कृति के क्षेत्र में लाला जी से पूर्व परिचय रहा। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा……..कैसे आना हुआ ? हमने कहा बस्तर की बोली हल्बी में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति के लिये ‘‘बस्तर माटी’’ लोक सांस्कृतिक मंच का गठन किया गया है।
‘‘बहुत अच्छा नाम है, जो बस्तर का प्रतिनिधित्व करता है।’’ लाला जी ने कहा। हमने अपनी बात रखते हुए लाला जी से कहा……इस…….सांस्कृतिक संस्था के संरक्षक का भार आपको सौंपने का निश्चय किया है। क्या आप हमारी संस्था के संरक्षक बनना स्वीकार करेंगे ? कुछ देर मौन रहकर लाला जी ने अपनी स्वीकृति दी, लेकिन उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा ‘‘मुझे आश्चर्य हो रहा है कि आप लोगों ने मुझे संस्था के संरक्षक बनाने का विचार किया, वैसे आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति को संरक्षक का पद दिया जाता है।’’ ऐसा कहते हुए भाव विभोर हो उठे, और हमें आशीर्वाद दिया। उन्हें सांस्कृतिक संस्था का संरक्षक बनाने का सौभाग्य पाकर हम सभी गौरान्वित हुए। खैर यह थी लाला जी की महानता। लालाजी की एक बात और………. पुनः लालाजी को हमने एक वन्दना गीत हल्बी में लिखने को आग्रह किया, जिसे ‘‘बस्तर माटी’’ सांस्कृतिक मंच द्वारा मंच पर कार्यक्रम आरंभ के पूर्व गाया जाय। लालाजी ने एक ऐसा वन्दना गीत लिखा, जिसमें बस्तर के समस्त देवी देवताओं का वर्णन रहा है। जिसे कलाकारों ने ‘देवपाड़’ में संगीतबद्ध किया। और एक कलाकार को थाल पकड़ाकर दीप, अगरबती से वंदना-गीत का अभ्यास कराया। हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, तुड़बुड़ी के साथ गीत को देवपाड़ में कलाकारों ने गाना शुरू किया।
‘‘धन धन बस्तर मांय धरतनी।
तुचो मया चो छांय ऐ धनी।।’’
कलाकार उत्साह पूर्वक गीत गाने लगे, जैसे-जैसे गीत आगे बढ़ता, देवधामी के वर्णन होने पर अभ्यासरत कलाकार के पैर कांपने लगे, कलाकार ने आगे अभ्यास करने से मना कर दिया। पुनः एक कलाकार ने स्वयं इच्छा जाहिर करते हुए थाल पकड़कर अभ्यास आरंभ किया, जब ढोल, मंजीरा, तुड़बुड़ी के साथ देवपाड़ में कोरस-गीत होने लगा, तब उस कलाकार के भी पैर काँपने लगे, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी, और कहने लगा, गीत बंद मत करना, गाते रहो, जल्दी-जल्दी गाओ, और देखते ही देखते कलाकार को देवी चढ़ने लगी, हमने देवी का रूप देखा, कुछ कलाकार डरकर सहम गये। धीरे-धीरे वह कलाकार जमीन पर बैठ गया, देवी झुमने लगी…….देवी झुमने लगी, पसीने से लथपथ उस देवीरूपी कलाकार को देखते ही रह गये। सांस्कृतिक संस्था के एक बुजुर्ग कलाकार जो देवी देवताओं को समझते थे, उन्होंने पूछना आरंभ किया………..
‘‘तुमी कोन आहास, कसन इलास, आमी पीलामन के तुमी माफी दियास, खेल-खेल ने आमी गोटक नाटक मंडली बना लूंसे’’ झूमते हुए कलाकार ने कहा…… मैं दन्तेश्वरी मांय चो छांय आय, तुमी अच्छा करला सहास, मके गीत, गाउन-गाउन हाक दिलास, मय तुमचो लगे इलेंसे, अंदाय मके नी छांडा, जहां बले मंडली चो कार्यक्रम होयदे मचो फोटो आऊर गोटक लीमऊ जरूर राखासे। तुमचो मंडली खुबे आगे बाढ़े दे……..नाम होयदे………..’’ अब देवी को शांत करना था, हमारे ही संस्था के एक कलाकार ने देवी शांति गीत गाया………‘‘डोकरी आया मांय फिरता,/खाऊन पान चोपा देस तुई।’’
धीरे धीरे देवी का झुमना शांत हुआ, देवी शांत हुई, हम सभी कलाकार सीहर उठे थे। देवी ने हमे परसाद के रूप में चावल दिया। बस्तर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बस्तर माटी लोक सांस्कृतिक मंच का सफल मंचन हुआ, जहां हमने देवी मां का आवहान कर कार्यक्रम की शुरूआत की। लालजी नहीं रहे, लेकिन आज भी उनके द्वारा रचित वन्दना गीत, उनकी याद दिलाता है।
नरेंद्र पाढ़ी
संयोजक,
बस्तर माटी लोक सांस्कृतिक मंच
पथरागुड़ा वार्ड
जगदलपुर-बस्तर 94255-36514