अर्ध रात्रि का ज्ञान
पकने का समय कई दिनों से अब तक/लिखने का समय 8.00 पी.एम. से 112.35 ए.एम. दिनांक-26 जुलाई 2021
मेरी समीक्षा-एक अदद पुस्तक विमोचन में
लेखक-सनत सागर, संपादक बस्तर पाति, जगदलपुर, छ.ग.
डिसक्लेमर-भरोसेलाल जी ने कहा है कि जो भी इसे आधा पढ़ेगा उसके मामाजी रास्ता भूल जायेगे। अब ये न पूछना कि जिसके मामा ही नहीं हैं तो कौन रास्ता भूलेगा।
’नहीं आपको समीक्षा करनी ही होगी। मेरा निवेदन है और छोटे भाई का प्यारा आदेश भी मानिये। मेरे कहानी संग्रह के बारे में अगर आप न बोलें तो विमोचन का मतलब ही क्या रह गया ? आप तैयारी कर लीजिए, अभी शनिवार के लिये चार दिन हैं तब तक आप आराम से तैयारी कर सकते हैं।’ रमनदीप पीछे पड़ता हुआ बोला।
एक पल को शांति छा गयी। मैं रमनदीप की बातों के साथ अपना भी दिमाग दौड़ा रहा था। अगर ज्यादा मना कर दिया तो रमनदीप कहीं सच में मुझसे समीक्षा न करवा कर किसी दूसरे से करवा लेगा। मंच में जाने का मौका चूक जाउंगा। माना कि कहानी से मेरा दूर दूर तक लेना देना नहीं है परन्तु आमंत्रण पत्र छपे नाम और अखबारों में छपायी खबरों के माध्यम से आम जन तो यही मानेंगे कि मैं कहानी का समीक्षक हूं। कार्यक्रम में मैंने क्या बोला क्या नहीं बोला उसे कौन चेक करने आयेगा। तुरंत ही मैंने बोला।
’मैं तुम्हारा आग्रह नहीं टाल सकता हूं मैं जरूर आउंगा।’
मेरी बातें सुनकर रमनदीन खुशी से फूला न समाया।
उसने धन्यवाद देकर फोन काट दिया परन्तु मेरा तनाव अब ये था कि पुसतक विमोचन में मैं क्या बोलूं।
’हां, ये ठीक रहेगा।’ मैं खुश होकर हवा में मुट्ठी लहराया।
चार दिन बीत चुके थे और मैं रमनदीप के कहानी संग्रह ’कुछ तुम्हारी कुछ मेरी कहानी’ की समीक्षा का दौर सभागार में शुरू हो चुका था।
रेशमा जी मंचस्थ अतिथियों के बीच बैठी थी जो कि एक बड़ी समाजसेविका मानी जाती हैं। वह माइक पर अपनी समीक्षा पढ़ रही थी। मुख्य अतिथि एक राजनीतिक दल के नेता था।
’मैं रमनदीप जी को बरसों से जानती हूं वह मेरे छोटे भाई जैसा है। उसके चेहरे की सदाबहार मुस्कुराहट की मैं जबरदस्त फैन हूं। उसके इस पुस्तक प्रकाशन पर निजी रूप से मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है। उसकी बहन, मेरी बेटी की क्लोज फ्रेंड है। मेरे यहां उनका आना जाना लगा रहता है। रमनदीप का लेखन बहुत अच्छा लगता है………..।’
रेशमा जी कहती जा रही थीं परन्तु न तो उनके कहने में रमनदीप का साहित्य था न ही उसकी समीक्षा! ये सब सुनकर मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि हो गयी थी। तभी मंच संचालक ने बनावटी आवाज में कुछ कहा तो मेरा ध्यान गया।
’आग को आग से बुझाना आता है
पानी को पानी से समझाना आता है
हमारी काबिलियत पर संदेह न कर
हमें तो आग में पानी डालना आता है।
ये पंक्तियां समर्पित हैं श्री रमनदीप जी के लिये। उन्होंने जो लिखा है अद्भुत है। अब मैं आमंत्रित करती हूं डॉ प्रदीप को जो हमारे उस कालेज के प्रोफेसर हैं जहां से हमारे क्षेत्र के महान साहित्यकार पढ़े लिखे थे। वे अब रमनदीप जी के कहानी संग्रह की समीक्षा करेंगे।’
गिरता पल्लू अपनी जगह आ गया था और इस बीच डॉ साहब माइक सम्भाल चुके थे।
’मैं मंचस्थ श्री अमोलक जी को धन्यवाद ज्ञापित करूंगा जो अपने व्यस्त राजनीतिक जीवन में से अपना कीमती समय निकाल कर हमारे बीच आये। आपकी, शहर में जो पहचान है वह आपके कार्यों का बाअदब आलेख है। रेशमा जी से तो पिछले माह ही मुलाकात हुयी थी, शायद कपड़े की दुकान में। आपकी खूबसूरती को बढ़ाने के लिये उसे कपड़े की दुकान के कपड़े मरे जा रहे थे। और आप थी कि इस नाचीज को भी न देखा था, मैंने आपको टोकने की गुस्ताखी की थी।
यहां से मेरा अनुज मंगल दिख रहा है, संयोग से वो और मैं एक ही गांव के हैं। मनोज का नाम न लूं तो मनोज नाराज हो जायेगा। सौम्या जी आप खूब लिखती हैं। महेश तुम अब हमारे पर चढ़ने वाले हो भाई! कुमार जी को प्रणाम करता हूं। रमनदीप! तुमने बेहद मेहनत से हम सबके मिलने का अवसर पैदा किया, तुम्हे साधुवाद। अच्छा जयहिन्द।’
डॉ साहब माइक से अपने स्थान पर पहुंच चुके थे, तब मेरी नींद का झोंका दूर हुआ। मेरी खुशी का ठिकाना न था। न तो मैंने रमनदीप क पुस्तक देखी थी न ही मेरी समझ कहानियों को समझूं, ऐसी थी। डॉ साहब ने तो मुझे माइक और मंच में फैलने का मौका दे दिया था।
’तू रसायन ऐसा जिसमें हम घुल जायें,
खून में एक नयी कहानी लिख जायें।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं श्री सागर जी को मच पर आमंत्रित करती हूं। वे शहर, प्रदेश और देश के जाने माने हस्ताक्षर हैं। उनकी उपस्थिति मात्र ही कार्यक्रम की सफलता लिख देती है। आइये सुनते हैं श्री सागर जी को।’
मैं संचालक जी की ओर एक गहरी मुस्कान फेंक कर माइक को पकड़ लिया। चारों ओर मुंह घुमाकर देखा। शहर के वरिष्ठ, कनिष्ठ और अन्य प्रकार के लोग बैठे थे। मैंने अपनी बात रखी।
’आदरणीय मंच, श्री अमोलक जी को अगली बार हम विधायक जी कह कर बुलाना चाहेंगे।’ और अपने हाथ जोड़ दिये। वे एक ही पल में एकदम से फूलकर कुप्पा हो गये। रेशमा जी की सुंदरता की मैं डॉ साहब जैसी तारीफ नहीं करूंगा बल्कि…उससे कहीं ज्यादा कहना चाहूंगा। वो हम जैसों के बीच फंस कर फिल्मों में नाम नहीं कमा पायीं। अगर हमारे जैसों की तारीफ में पड़ी होतीं तो आज माधुरी इनके घर बर्तन मांज रही होती।
आदरणीय संचालक महोदया को मैं कैसे भूल सकता हूं तुम तो मेरी खूबसूरत बेटी की तरह हो। तुम्हारे संचालन का तो कायल रहा हूं मैं। तुम्हारी मधुर मीठी आवाज रातों को मेरी नींद उड़ा देती है।
मैं आपको बता दूं कि मैं कहानी के बारे में कुछ नहीं जानता हूं। मैंने तो सिर्फ रमनदीप की पत्नी के निवेदन पर ही ये समीक्षा में माइक और मंच पर आना स्वीकार किया है। वरना आप जानते हैं मैं इन सब से दूर रहता हूं। मैं आपको बताता हूं कि साइकल से आप पांच किलामीटर बगैर थके किस तरह से जा सकते हैं। साइकल में मैंने विशेज्ञता हासिल की है। मेरे भाई की जो साइकल की दुकान है वहां से मैं साइकल लेकर हमेशा घूमने चला जाता हूं।
मेरे पास वैसे भी समय की कमी होती है। सरकारी नौकरी में वक्त ही कहां मिलता है। कभी गैसे लेने जाओ तो कभी बिजली बिल पटाने। तनखा बढ़ाने के भी आंदोलन में व्यस्त होना पड़ता है।
माफ करना रमनदीप मेरे पास तुम्हारे लिये कहने को कुछ नहीं है। मैं तो सिर्फ तुम्हारे निवेदन पर ही आया हूं। वैसे तो मैं माइक पर कम बोलता हूं। परन्तु माइक मिल जाये तो छोड़ता नहीं हूं।’ मैंने हंस कर कहा तो सभागार हंसी से भर गया। हाथ जोड़कर मंच से उतर गया। उतरते वक्त एक ने मेरा पैर पड़ लिया तो मैंने उसे गले लगा लिया।
नाश्ता, चाय और फिर अंत में कहानी संग्रह का प्रसाद बंटा। छीना झपटी का दृश्य मंचीत होते होते बचा। भले ही उन पुस्तकों के पन्नों को बल्ब की रोशनी नसीब न होनी थी। नाश्ते की दूसरी प्लेट लेते हुये मैंने तीसरा चाय का कप लिया। आखिर मंच में चढ़ने के बाद थकान का आना सुनिश्चित होता है।
तभी तेज तर्रार अभयराज मंच पर आ गये थे समीक्षा के लिये।
’अगर आपको लिखने नहीं आता है तो मत लिखिये, यूं पुस्तक छपवाकर जनता में कहानी के प्रति जुगुप्सा तो न जगाइये। कितना गंदा लेखन है आपका। कवरपेज से ही आपके विचारों की गंदगी छलक रही है। मैं ऐसे विमोचन का बहिष्कार करता हूं।’
अगले पल समझ आया कि कार्यक्रम अभयराज के चलते विवाद में आ गया था। छी, इतना अच्छा भला पुस्तक विमोचन चल रहा था। मेरा दिमाग खराब हो गया। मैंने तुरंत ही चौथा कप चाय का मंगाया।