काव्य-बरखा भाटिया

दर्दों की दास्तान है ग़रीब का चेहरा
रोती हुई मुस्कान है ग़रीब का चेहरा।

मोहरा है ज़िन्दगानी, वक्त की बिसात पर
दांव पर लगी दुकान है, ग़रीब का चेहरा।

दीवार की दरार है, माथे की हर शिक़न
खण्डहर सा इक मकान है ग़रीब का चेहरा।

इक रोटी के वास्ते, सच्चाई बिक गई
बेबस सा बेईमान है, ग़रीब का चेहरा।

हर शिक़वा उड़ा देता है, इक बीड़ी का धुआं
जुबां रखके बेजुबान है ग़रीब का चेहरा।

मजबूरियों के हीरे और मोती ग़रीबी के
लाचारियों की खान है, ग़रीब का चेहरा।

सिगड़ी से निकले दिन, और बोतल में डूबी रात
देखो किस क़दर आसान है, ग़रीब का चेहरा।

चिथड़ों से झांकता है, बढ़ती बेटी का बदन
भूखी नज़रों से परेशान है, ग़रीब का चेहरा।

बरखा भाटिया
कोण्डागांव
मो.-9752392921