नीम अंधेरे-कविता संग्रह-मोहिनी ठाकुर

नीम अंधेरे-कविता संग्रह

कवितायें कभी पहले से कहकर नहीं आती, जब भी आती हैं दबे पांव, बिना दस्तक दिये-कभी पीछे से आकर दोनों हाथों से आंखें बंद कर छुप जाती है तो कभी गले में बाहें डालकर झूल जाती हैं नन्हीं बच्ची की तरह/कभी देर रात ओस की बूंदों सी चुपचाप उतरती है तो कभी मौसम के कांधों पर सवार इठलाती हुई पहुंचती है…….यह कथन है प्रकृति की गोद में पूर्ण रूप से समाई श्रीमती मोहिनी ठाकुर जी का। मोहिनी जी वास्तविक जीवन में भी प्रकृति की गोद में ही रह रही हैं। ये कविता संग्रह ‘नीम अंधेरे’ उनके जीवन का प्रकृति के वास्तविक सानिध्य में बिताये पलों का लेखा-जोखा ही है।
कवितायें वास्तव में हृदय में कभी भी उठ जाने वाली तरंगें ही हैं जो खुद से रूबरू कराती हैं-
हो गया है अब
आसान बहुत
तोड़ लेना तारे
आसमान के
और भर लेना
बादलों को
अपनी मुट्ठी में
अब हूं मैं
जमीं की गिरफ़्त से.
बहुत दूर
खुली हवा में
बहती हुई
चांदनी की तरह
जहां चांद उठता है
मेरे इशारे से
और जाग उठता है
सबेरा मेरे गुनगुना लेने से….
कविता ही हृदय की गहराईयों से होती हुई आसमान की ऊंचाई छू सकने का सामर्थ्य रखती है और अगर अपनी क्षमता को पहचान ले तो-
मिल जाता है
खुशी का मीठा झरना
अपने ही आसपास
जरा सी मिट्टी
कुरेद लेने भर से
यूं दिल को छू लेने वाली कविताओं के सत्तर से अधिक फूलों से सजे गुलदस्ते में तरह-तरह की खुशबु समाई है-
बचपन की खुशबु है
धूप की नदी
बादल की नाव
सैर आसमां की
ठण्डी सी छांव
छूट गया दूर कहीं
बचपन का गांव
थकने लगे मौसम के
नन्हें पांव
उपरोक्त कविता में घूप, बादल, आसमान, नदी आदि सभी का अर्थ ही बदल दिया। इनका यही अंदाज सभी कविताओं की खास विशेषता है। यही इनकी शैली है। प्रकृति के चिन्हों को प्रकृति के चित्रों से उठाकर मानव जीवन से जोड़कर तारतम्य स्थापित करना मोहिनी जी की कलम की ताकत है। वर्तमान में इस शैली को अपनाने वाले उंगलियों में गिने जा सकते है।ं अन्य बिम्बों का प्रयोग बहुतायत में होता है।
अपनी इस विशिष्ट शैली की कविताओं को लिखते वक्त तमाम अनुभव हुए होंगे तब तो उन्होंने ‘हौसला’ कविता में लिखा है-
हर लहर को मालूम है
अंजाम अपना
उठना-गिरना
चट्टानों पर
सर पटकना और
टूटकर बिखर जाना
फिर भी
कम नहीं होता
हौसला उनका
और न ही पसीजता है
चट्टानों का दिल
पत्थर का…..
उन तमाम प्रश्नों के उत्तर इस छोटी कविता के माध्यम से प्रश्नकर्ताओं के चेहरे पर चटका दिये हैं।
कविता संग्रह का शीर्षक ‘नीम अंधेरे’ भी प्रकृति की उस अवस्था का नाम है जो प्राकृतिक रूप से ही नजर आती है। कृत्रिम रूप से पैदा किये गये अंधेरे को ये नाम देना प्रकृति की उस विशिष्ट अवस्था का अनदेखापन ही कहलायेगा।
जीवन के सन्नाटे का वर्णन है-
सन्नाटे का सैलाब
फिर चढ़ आया है
मेरे अस्तित्व को
लीलने
मन फिर आज
डूब गया है
गले तक
खालीपन के जल में……..
तो मन की वाचालता और उसके अंतहीन अनुत्तरित रहने का वर्णन है-
कभी-कभी मन
खुद से ही
पूछता है प्रश्न
और
अनुत्तरित होकर
बेताल की तरह
फिर जा बैठता है
किसी वृक्ष के ठूंठ पर
नये सिरे से
नई पहेलियां बुझाने
इसके बाद फिर से चाहत मन की हो जाती है-
मन की भी/क्या खूब/चाहत हुआ करती है/भीड़ में-अकेलेपन को/और अकेलेपन में/भीड़ को खोज लेने की….
अलग ही तरह का आनंद देने वाली इनकी कविताओं में प्रकृति रग-रग में समाई महसूस होती है। मानव जीवन के सुख-दुख, जीवन शैली सबकुछ प्रकृति के चिन्हों के बीच खोज लेने वाली कवितायें पठनीय हैं। इनका पढ़ा जाना कविता प्रेमी के लिए उतना ही आवश्यक है जितना उनका कविता रचना! इनके गहरे बिम्बों वाली कविताओं के उदाहरण से वे अपनी कविताओं को एक नया आयाम दे सकते हैं। उन्हीं के शब्दों में हम सभी के लिए संदेश है-
यादों का इक/नन्हां सा दीया/दिल में जलाया कीजिए/यूं ही अकेले में/कभी कुछ/गुनगुनाया कीजिए।