अर्ध रात्रि का ज्ञान
पकने का समय कई दिनों से अब तक/लिखने का समय 7.00 पी.एम. से 08.35 पी.एम. दिनांक-23 जुलाई 2025
विरोध -बनाम -विरोध
लेखक-सनत सागर, संपादक बस्तर पाति, जगदलपुर, छ.ग.
आजकल देश में एक अद्भुत नजारा देखने को मिल रहा है। मुहावरों की भाषा में इसे आंखों मे धूल झोंकना कहा जा सकता है। सच न देख पाये कोई इसलिये झूठ का अंधेरा फैलाने की जीजान से कोशिश की जा रही है। कुछ पंक्तियों में बात समझ आ ही जायेगी।
अखबारों की सुर्खियां लगातार आ रही हैं –
लाखों लोगों के घर अब नहीं जलेगा चूल्हा!
लाखों लोगों के भूखे पेट का कौन जिम्मेदार
अनपढ़ ग्रामीण कैसे राशन केवाईसी करवायें
राशन कार्ड केवाई सी करवाये या फिर दो पैसे कमाये
अब जरा समझने का प्रयास करते हैं कि ऐसी खबरों का मकसद क्या है! जो व्यक्ति अपना राशनकार्ड बनवाते समय सब पेपर देता है तब जाकर राशन कार्ड बनता है वही व्यक्ति राशन कार्ड के नवीनीकरण में अपने पेपर क्यो नही दे सकता है ? इसमें ऐसी कौन सी भयंकर कठिनाई आन पड़ती है ? और जबकि इस केवाईसी अपग्रेडेशन के लिये एक साल से ज्यादा समय दिया जा चुका है।
इसके छिपे पहलू कई सारे हैं। जिसमें से कुछ हैं-
राशन दुकान की दो नंबर की कमाई का बंद होना। अभी मरे हुये, बाहर गये परिवार, और नकली परिवारों के नाम पर पूरा एक रैकेट काम कर रहा है जो ऐसे लोगों का हिस्सा खुद बाजार में डबल रेट में बेचकर कमा रहा है।
कुछ पार्टियों ने अपना वोट बैंक इन्हीें लोगों को बना रखा है। चोरी का माल बेचना खरीदना उनके लिये धंधा बना कर नौकरी दे रखी है।
जैसे ही राशन में आधार केवाईसी करवाई गये पूरे देश से करोड़ो लोगों ने अपना सत्यापन ही नहीं करवाया। इसका मतलब ये नहीं है कि वे बेचारे सत्यापन करवाने नहीं आ पाये, बल्कि ऐसे लोगों न डर के मारे सामने आने से इंकार कर दिया। उनको यह डर है कि कहीं वे सामने आये औैर उनकी पहचान उजागर हो गयी तो राशन तो जायेगा ही बल्कि देश से भी बाहर जाना पड़ेगा। और बहुत से लोग तो फर्जी ही थे जिनके सहारे नकली स्टाक मंगवाकर खाने पचाने का गेम चल रहा था। इसलिये अखबारों में खबरें छपवाते थे- केवाईसी करने वाली मशीन सही काम नहीं करती है, मशीन से आधार वेरीफिकेशन हो ही नहीं पा रहा है। पचास मशीन एक ही दिन में खराब, टारगेट कैसे पूरा होगा। आदि!
ये तमाम खबरें एक तरह से फर्जी ही थीं। उपभोक्ता से कहीं ज्यादा विक्रेता और दलालों का दर्द था ये।
वोटर कार्ड अपडेट करना-
अभी ताजा मामला वोटर कार्ड का चल रहा है। इसके अपडेट करने पर आम आदमी से कहीं अधिक राजनीतिक दल हल्ला मचा रहे हैं। अखबार पटे पड़े हैं-
एक आम आदमी ये पेपर कैसे जुगाड़ करेगा
अपडेट मशीन खराब हुई
एक ही मोहल्ले के सौ नाम गायब,
आधार कार्ड को प्रूफ नहीं मानने पर लोग नाराज।
वास्तव मे भीतर की बात ये है कि लाखों लोगों के फर्जी नाम जोड़ रखे थे जिनकी आड़ में दूसरे लोग वोट डाला करते थे।
घुसपैठियों को फर्जी आधार राशन वोटर कार्ड बनवाकर दिया गया है। वे एकमुश्त अपने रक्षकों को वोट देते हैं। एक तरह से अपने वोट देने वालों का फर्जी गिरोह बना कर रखा गया था। ये तो लोकतंत्र की भावना पर उसकी जड़ों पर चोट है।
हल्ला करने वाले कौन ? वही जातिवादी, मुस्लिमपरस्त, घुसपैठियों की बदौलत जीतने वाले पार्टी नेता। इनको दर्द हो रहा है क्योंकि पचीसों बरस में ऐसा मोटा ताजा खाया पिया वोटबैंक बना रखा था जिसे एक ही झटके में मिट्टी कर दिया।
माने आधुनिक समय के आधुनिक सुधारों से दिक्कत हो रही है। सबको सुविधाएं एकदम लेटेस्ट चाहिये और वोट डालने की प्रक्रिया में आदम शैली होनी चाहिये, मुंडी गिनो, हाथ उठाओ या फिर बैलेट पेपर!
यूपीआई से समस्या
अब तो यूपीआई से समस्या भी होने लगी है। खबरें आती हैं-
दस नित से यूपीआई बंद, व्यापार हुआ चौपट
लाखों का फ्राड हुआ यूपीआई से
सुरक्षा बगैर यूपीआई बना लूट का साधन
ग्रामीण कैसे करेगा यूपीआई से पेमेंट
आदि, आदि!
वास्तव में इसके फायदे इतने हैं कि इसे हटाना अब नामुमकीन है। वास्तव में यूपीआई से चिढ़ने का कारण है इस सिस्टम से व्यापार में पारदर्शिता आयी है। उपभोक्ता हितों की रक्षा हुई है। वरना एक वक्त सब यही कहते थे चिल्हर नहीं है। और इसकी आड़ में कई दुकानदार तो दो तीन हजार रूपये का सामान चिल्हर के रूप में दे दे कर बेच डालते थे। बिल कलेक्शन वाले दिन भर में हजार डेढ़ हजार चिल्हर नहीं है बोल बोल कर हजम कर जाते थे। जाने कितनों की पेंट की जेब चिल्हर से फट जाती थी।
हां, नुकसान तो पत्नी को हुआ है, उस बेचारी को अब पेंट मे छूटी हुई चिल्हर नहीं मिलती है।
सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि जिन लोगों को छोटा मोटा व्यापारी समझा जाता था वे भाई लोग तो करोड़पति निकलने लगे। यूपीआई से लेन देन होने से पता चला कि एक चाट वाला साल भर में बीस लाख की चाट बेच देता है, जलेगी वाला बीस लाख की जलेगी बेच डालता है। गली कूचे के ठेले वाले साल भर में चालीस लाख से कहीं अधिक बेचते हैं। यानी कि ये बंधु बड़ा काम करके भी टैक्स चोरी कर रहे थे।
कबाड़ी वाले, बूचड़ वाले जैसे छोटे समझे जाने वाले काम, छोटे काम नहीं हैं बल्कि ये तो करोड़ों के काम हैं। सबसे ज्यादा होटल व्यवसाय, कपड़ा जूते चप्पल के व्यवसाय पकड़े जाने लगे। सरकार यही तो चाहती थी कि लोग ईमानदारी से टैक्स दें। और ये बेचारे टैक्स देने तैयार भी हैं परन्तु जो इनसे कहीं अधिक कमाकर चुपचाप थ डकार भी नहीं लेते थे असलीदर्द उनको हो रहा है। वे ही फड़फड़ा रहे हैं। नेतागिरी करके मानवतावादी बनकर टेसुऐं बहा रहे हैं। स्ट्रीट वेंडर जब लखपति निकल गया तो उनको माल देने वाला तो निश्चित रूप से करोड़पति होगा ही।
बस इनको हो रहा है दर्द! गुप्त स्थान पर!!
ये नेतागिरी करके यूपीआई के दोष गिना रहे हैं। पैसे देकर अखबारों में नकारात्मक खबरें छपवा रहे हैं। ये सफेदपोश लोग गरीबों को भड़का कर यूपीआई पैसा न लेने की सीख दे रहे हैं।
आपको नहीं लगता कि ये बेचारे ऐसा करके अपने पेट पर लात मार रहे हैं ?
यूपीआई के चलते, चोरी राहजनी, बिना मकसद के खर्च बंद हो गये। लोगों की सेंविंग की आदत डेवलप होने लगी।
खैर! वोटबैंक की राजनीति क्या न कराये। यहां भी वोटबैंक प्रभावित हो रहा है।
आधार कार्ड का निर्माण
आधार के आने पर आसमान ही गिर गया था और आज जब इसे सरकार ने नागरिकता नहीं है कह दिया तबसे डबल आसमान गिर गया।
कितनी मुश्किलों के बाद घुसपैठियों को आधार देकर देश का नागरिक बनाया था अब वे बेचारे फिर से अनाथ हो गये।
आधार के लिये हल्ला उड़ाया गया कि इससे प्रायवेसी खत्म हो जायेगी।
वास्तव में आधार के आने से देखिये कैसा फायदा हुआ-
-राशन कार्ड काफी कम हुये। एक ही आदमी देश में दो तीन जगह राशन कार्ड बनवा कर राशन ले रहा था। करोड़ों कार्ड कम हुये। अरबों के अनाज का भ्रस्टाचार पकड़ में आया।
-आधार से आंगनबाड़ी लिंक होते ही वहां का बजट कम हो गया। एक ही बच्चा स्कूल ओर आंगनबाड़ी में था। न तो अब फर्जी बच्चे दिखा सकते हैं नहीं डबल जगह से एक ही बच्चे का सरकारी माल हजम कर सकते हैं।
-आधार से लिंक करते ही स्कूलों में वास्तविक छात्रों की संख्या आ गयी। उनके यूनीफार्म, पुस्तक, मासिक फण्ड, भोजन आदि के अरबों खरबों बच गये। फर्जी स्कूलों की संख्या कम हो गयी। अभी जो स्कूलों का युक्तियुक्त करण किया जा रहा है उसमें यही दर्द महसूस हो रहा है। बच्चे हैं नहीं मगर स्कूल है स्टाफ है, यानी बगैर काम के पैसा!
-आधार से लिंक करते ही मदरसे गायब, उसके बच्चे गायब!
-अभी दिल्ली में विधवा पेंशन लेते जिन्दा पति का मारने वाली महिलायें आधार लिंक करवाने से पकड़ाईं।
-वोटर कार्ड को आधार से लिंक करते ही वोटरों की संख्या कम हो गयी।
-आधार से लिंक करते ही बैंक खाते आपस में जुड़ गये और अब उनके लेनदेन सरकार को समझ आने लगे। दो नंबरी काम जो बैंकों के माध्यम से होते थे अब वे बंद हो गये।
-आधार से अब जमीन के लिंक होते ही पता चलेगा कि किस किस की जमीन अलग अलग स्टेट में खरीद कर रखे हैं।
-आधार से लगभग हर चीज लिंक हो गयी है। बस जिस दिन सरकार अपने पर उतर आयी उसी दिन पता चल जायेगा भ्रस्टाचार का बड़ा चेहरा।
चोरी के रास्ते बंद होने पर उनको ही बड़ा दर्द होता है जो इसे अपना पुश्तैनी धंधा बना रखे हैं। ये लोग ही उछलकूद करके विरोध विरोध चिल्लाते हैं। जबकि इससे अस्सी नब्बे परसेंट लोगों का फायदा ही है।
कई बार ये सब देखकर लगता है कि हम सूअर बन गये हैं साफ सफाई देखकर घिन और उबकाई सी आने लगी है।