चंद सवाल
मैं हूं एक कामना बनकर अमन बहना चाहती हूं
हर एक के दिल में रहना चाहती हूं।
मैं उनसे कुछ जानना चाहती हूं
जो धमाकों के धुंध में खुद को खोना चाहते हैं
हंसने के मौसम में रोना चाहते हैं?
वो आंसूओं के सागर को
दर्द की तपिश देकर
खूनी मेघ क्यों बनाना चाहते हैं?
जिसके बरसने से आहत हो ये धरा
ऐसा व्यूह क्यों रचना चाहते हैं?
जो दे न सके जीवन
वो लेना क्यों चाहते हैं?
ये दुनिया है अस्थायी निवास
ये क्यों समझना नहीं चाहते हैं?
आखिर इस दुनिया में
जीवन से कीमती क्या है
जिसे वो पाना चाहते हैं?
आखिर वो क्या चाहते हैं
मैं जानना चाहती हूं।
मासूमों की लाशों के ढेरों से
आंधियां चलती है,
कांप उठती है धरा
वो कैसे उसे थामना चाहते हैं?
मिटाकर बनाने की
कैसी परिपाटी चलाना चाहते हैं?
गिनती की होती हैं सांसें
हर एक के हिस्से में
मिटाने और पाने की धुन में
गर सांसे हो जायें खत्म
तो कौन से भगवान से
वो सांसें मांगना चाहते हैं?
आखिर वो क्या चाहते हैं
मैं हूं एक कामना बनकर अमन बहना चाहती हूं
हर एक के दिल में रहना चाहती हूं।
श्रीमती एम. दंतेश्वरी राव
पी.टी.आई. मसोरा
चिखलकुटी, कोण्डागांव छ.ग.
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